Rakhsha bhandhan कथा: कैसे शुरू हुई भाईयों को राखी बांधने की परंपरा? जानिए रक्षाबंधन की पौराणिक कथा
Rakhsha bhandhan, जिसे राखी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भाई और बहन के पवित्र बंधन का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई उसकी रक्षा करने का वचन देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खूबसूरत रस्म की शुरुआत कैसे हुई? आइए, रक्षाबंधन की कुछ पौराणिक कथाओं और रोचक तथ्यों पर एक नज़र डालते हैं:
इंद्राणी और इंद्र की कथा:
पुराने ज़माने की बात है। हमारे बड़े-बुजुर्ग अक्सर एक कहानी सुनाया करते थे – इंद्र और इंद्राणी की। वो कहते थे कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। देवताओं के राजा इंद्र बड़े परेशान थे क्योंकि लग रहा था कि उनकी हार होने वाली है।
तभी उनकी पत्नी इंद्राणी ने एक यज्ञ रचाया। कहते हैं, उस यज्ञ से एक चमकता हुआ धागा निकला। इंद्राणी ने वो धागा अपने पति की कलाई पर बांध दिया और कहा, “यह तुम्हें शक्ति देगा और विजयी बनाएगा।”
बस फिर क्या था, इंद्र ने अपने में नई ऊर्जा महसूस की और युद्ध में विजय पा ली। लोग कहते हैं कि यहीं से राखी की परंपरा शुरू हुई। धीरे-धीरे यह रिवाज़ बदला और भाई-बहन का त्योहार बन गया।
मज़ेदार बात यह है कि यह शायद एकमात्र कहानी है जहां पत्नी ने पति को राखी बांधी। लेकिन समय के साथ-साथ इसका रूप बदलता गया और आज हम इसे जिस रूप में मनाते हैं, वो अपने आप में खास है।
राजा बलि और लक्ष्मी की कथा:
एक अन्य प्रसिद्ध कथा राजा बलि और देवी लक्ष्मी की है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और उसे पाताल लोक में भेज दिया।विष्णु ने राजा बलि की भक्ति से प्रभावित होकर उसे वरदान दिया कि वे पाताल लोक में उसकी रक्षा करेंगे।
इस कारण से, विष्णु पाताल लोक में रहने लगे। देवी लक्ष्मी ने अपने पति विष्णु को वापस लाने के लिए राजा बलि को भाई बनाकर उसकी कलाई पर राखी बांधी और उनसे अपने पति को लौटाने की विनती की। बलि ने यह वचन स्वीकार किया और विष्णु जी को लौटाने की अनुमति दे दी।
तभी से राखी भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक बन गई।
कृष्ण और द्रौपदी की कथा:
महाभारत की कथा में भी रक्षाबंधन का उल्लेख मिलता है। एक बार भगवान कृष्ण ने अपनी ऊँगली काट ली थी। जब द्रौपदी ने यह देखा, तो उन्होंने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की ऊँगली पर बांध दिया। इससे भगवान कृष्ण ने उनकी रक्षा का वचन दिया और बाद में द्रौपदी के चीर हरण के समय उनकी रक्षा की।
रक्षाबंधन केवल एक धागे का बंधन नहीं है, बल्कि यह भाई-बहन के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, भाई हमेशा अपनी बहन की रक्षा करेगा और बहन हमेशा अपने भाई की खुशहाली की कामना करेगी।
महारानी कर्णवती और सम्राट हुमायूँ की कथा
महारानी कर्णवती चित्तौड़ की रानी थीं और उन्होंने अपनी प्रजा की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े। 16वीं शताब्दी में, जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया, तो महारानी कर्णवती को अपने राज्य और प्रजा की सुरक्षा की चिंता सताने लगी। उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूँ से सहायता की गुहार लगाई।
कर्णवती ने हुमायूँ को एक राखी भेजी और उसे अपना भाई मानते हुए उसकी रक्षा के लिए आग्रह किया। हुमायूँ, जो मुगल सम्राट थे, ने इस राखी को बहन का प्यार और विश्वास मानकर स्वीकार किया और तुरन्त चित्तौड़ की ओर कूच किया। हालांकि हुमायूँ समय पर चित्तौड़ नहीं पहुंच सके और महारानी कर्णवती को जौहर करना पड़ा, लेकिन हुमायूँ ने बाद में बहादुर शाह को हराकर कर्णवती की प्रजा की रक्षा की और चित्तौड़ पर मुगलों का शासन स्थापित किया।
महारानी कर्णवती और सम्राट हुमायूँ की यह कथा रक्षाबंधन के पर्व की महत्वता और भाई-बहन के रिश्ते की महत्ता को दर्शाती है। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि राखी केवल एक धागा नहीं, बल्कि यह विश्वास, सुरक्षा और प्रेम का प्रतीक है।
रक्षाबंधन का त्योहार हमें भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहराई और सुंदरता का एहसास कराता है। यह पर्व हमें हमारे रिश्तों की महत्ता और उनकी रक्षा करने की जिम्मेदारी की याद दिलाता है। तो इस रक्षाबंधन, अपनी बहन या भाई को यह बताएं कि वे आपके जीवन में कितने महत्वपूर्ण हैं और उनके साथ यह पवित्र त्योहार मनाएं।