जितिया व्रत (Jitiya Vrat) एक प्रमुख हिंदू पर्व है जो विशेष रूप से उत्तर भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। यह पर्व मातृत्व और संतान की दीर्घायु के लिए समर्पित होता है। माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं। जितिया व्रत भारतीय संस्कृति और पारंपरिक रिवाजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जितिया व्रत का महत्व
जितिया व्रत की महत्ता मातृत्व और संतान की सुरक्षा से जुड़ी हुई है। यह पर्व महाभारत के युग से संबंधित है, जहां जिमूतवाहन नामक एक राजा ने अपनी प्रजा और नागों की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे। उनकी इसी महान बलिदान को याद करते हुए महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से माँ और संतान के बीच के अटूट बंधन को मजबूत करता है।
जितिया व्रत के रिवाज और परंपराएं
जितिया व्रत तीन दिन तक चलता है—पहला दिन नहाय-खाय, दूसरा दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण। व्रत की शुरुआत स्नान करके शुद्धता के साथ होती है, जिसे “नहाय-खाय” कहा जाता है। दूसरे दिन महिलाएं बिना अन्न और जल के व्रत रखती हैं, जिसे निर्जला व्रत कहा जाता है। तीसरे दिन व्रत का समापन किया जाता है, जिसे पारण कहते हैं। इस दिन महिलाएं पूजा-अर्चना करके फल, मिठाई और अन्न का सेवन करती हैं।
जितिया व्रत का सांस्कृतिक संदर्भ
जितिया व्रत भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। इस व्रत में महिलाओं की आस्था और त्याग की भावना देखने को मिलती है। यह पर्व महिलाओं के मातृत्व और उनके बच्चों के प्रति समर्पण का प्रतीक है। जितिया व्रत को लेकर ग्रामीण इलाकों में खासा उल्लास रहता है, और इसे सामूहिक रूप से मनाया जाता है। महिलाएं पारंपरिक गीत गाकर व्रत की महत्ता को बढ़ाती हैं।
जितिया व्रत न केवल एक धार्मिक आस्था है बल्कि यह भारतीय समाज की परंपराओं और रिवाजों को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का माध्यम भी है।
जितिया व्रत के दौरान महिलाएं समूह में एकत्रित होकर पौराणिक कहानियां सुनती हैं, जिसमें जिमूतवाहन के बलिदान और उनकी वीरता का वर्णन किया जाता है। इन कहानियों को सुनकर व्रतधारी महिलाएं अपने बच्चों की भलाई और दीर्घायु की कामना करती हैं। इस व्रत का धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही यह सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को भी मजबूत करता है।
व्रत के पीछे की आस्था और भावनाएं
जितिया व्रत के पीछे गहरी आस्था और मातृ प्रेम की भावना होती है। यह पर्व इस बात का प्रतीक है कि एक माँ अपने बच्चों की सुरक्षा और खुशहाली के लिए किसी भी कठिनाई का सामना कर सकती है। बिना अन्न और जल के कठिन व्रत रखने के बावजूद, माताएं हर्षोल्लास के साथ इस व्रत को करती हैं। उनका यह त्याग उनके बच्चों के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण को दर्शाता है।
आधुनिक जीवनशैली और व्यस्तता के बावजूद, जितिया व्रत का महत्व कम नहीं हुआ है। शहरी क्षेत्रों में भी महिलाएं इस व्रत को पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ करती हैं। यह पर्व उन धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है, जो भारतीय समाज में आज भी जीवंत हैं। इसके माध्यम से भारतीय महिलाएं अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का काम करती हैं।
जितिया व्रत भारतीय समाज में मातृत्व, त्याग और संतान की दीर्घायु की प्रार्थना का महत्वपूर्ण पर्व है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों को भी प्रकट करता है। जितिया व्रत के रिवाज और परंपराएं माताओं के अपने बच्चों के प्रति समर्पण और बलिदान को रेखांकित करते हैं। इस व्रत की महत्ता भारतीय समाज में सदियों से बनी हुई है, और यह आगे भी इसी तरह से मनाया जाता रहेगा।